भारत में कई सारे प्रसिद्ध स्थल स्थित हैं।इनमें से कई प्रसिद्ध स्थलों एसे हैं जिनका महत्व,खोज,धार्मिक मान्यता आदि के बारे में कई रहस्य हैं जिनका आजतक पूरी तरह से खुलासा नहीं हुआ हैं।एसी ही भारत में स्थित अमरनाथ गुफा का इतिहास रहस्यमय से भरा हुआ हैं।
हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में एक अमरनाथ भी सामिल हैं।यह गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक हैं।इस गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व के रहस्य के बारे में बताया था।इसलिए इस तीर्थ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता हैं।
वहां पार्वती पीठ भी मौजूद हैं।पार्वती पीठ 51 शक्ति पीठों में से एक है।कहते हैं कि यहां सती का कंठ भाग गिरा था।यहां माता के अंग तथा अंगभूषण की पूजा होती है।
इस पवित्र गुफा के दर्शन करने के लिए कई सारे श्रद्धालु जाते हैं जिसे अमरनाथ की यात्रा के नामसे जाना जाता हैं।इस पवित्र धाम के दर्शन करने का कई सारे भक्तों का सपना होता हैं और इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भी आतुर होते हैं इसलिए हम इस लेख अमरनाथ के बारे में रोचक जानकारी आपके सामने साजा करेगे।तो चलिए जानते अमरनाथ के बारे में..
अमरनाथ गुफा कहा पर स्थित हैं
अमरनाथ गुफा भारत के जम्मू – कश्मीर के श्रीनगर शहर से उतर पूर्व में 135 किलोमीटर दूर स्थित हैं जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से करीब 13600 फूट हैं।गुफा की लंबाई 19 मीटर,चौडाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर हैं।ऐसा भी कहा जाता हैं की यह गुफा 5000 साल पुरानी हैं।
अमरनाथ गुफा की खोज किसने की उसके पीछे की कहानियां
इस पवित्र गुफा की खोज किसने की थी इसके पीछे कई सारे कहानियां मौजूद हैं। इनमें से कुछ कहानियां के बारे में बात करेंगे
1) एक प्रचलित कहानी एक मुस्लिम गडरिए बूटा मलिक की हैं।जिसने 1869 में गुफा की खोज की थी।
बूटा मलिक भेड चराने का काम करता था।एक दिन बूटा मलिक भेड चराते चराते बहुत दूर निकल गया था।वो एक बर्फीले वीरान इलाके में पहुंच गया।वहा बूटा मलिक को एक साधु से भेट हुई।साधु ने बूटा मलिक को एक कोयले से भरा हुआ बेग दिया।जब बूटा मलिक घर पहुंचा तब उसने उस बैग में देखा तो कोयले की जगह सोना पाया और सोने को देखकर वह बहुत हैरान हो गया।उसी समय साधु को धन्यवाद करने के लिए वापस गया।किंतु,वहा पर बूटा मलिक को साधु नही मिला,वहा उसकी जगह उसने एक विशाल गुफा देखी।जेसी ही वो गुफा की अंदर गया उसने देखा कि भगवान शिव बर्फ से बने शिवलिंग के आकार में स्थापित थे।
यह बात बूटा मलिक ने गांव के मुखिया को बताए और फिर इस बात राजा तक पहुंच गई।इसी तरह धीरे धीरे यह महत्वपूर्ण स्थान के बारे में लोगों को पत्ता चलने लगा और इस पवित्र धाम के दर्शन करने के लिए लोग आने लगे।
बूटा मलिक की कहानी पर कई दावा किया जाता हैं।
एक यह दावा हैं की बूटा मलिक कोई मुसलमान नहीं था।बल्की,वह एक गुर्जर समाज से था।
यह भी कहा जाता हैं की वह इतनी दूर तक क्यूं भेड चराने जायेगा जहा तक की वहा ऑक्सीजन की कमी हैं।
कुछ स्थानीय इतिहासकार का कहना हैं कि 1869 के ग्रीष्मकाल में धर्मग्रंथों के आधार पर गुफा की फिर से खोज की गईं और पवित्र गुफा की खोज के तीन साल बाद पहली औपचारिक तीर्थयात्रा 1872 में आयोजित की गई थी।उस तीर्थयात्रा में बूटा मलिक एक गाईड के तौर पर मौजूद था।मार्ग को बनाए रखने की ओर गाईड के रूप में कार्य करने की उसकी जवाबदारी थी।इसलिए उसको इसका श्रेय दिया गया और आज भी उसके वंशजों को कुछ हिस्सा चढावा भी दिया जाता हैं।
2) भृगु मुनि ने ढूंढी थी गुफा- वहीं एक और कहानी प्रचलित हैं कि कश्मीर घाटी पूरी तरह से पानी में डूब गई थी।कश्यप मुनि ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे मोटे जल स्त्रोतों द्वारा बहा दिया।पानी कम होने के बाद वह घाटी का निर्माण हुआ।इसी दौरान भृगु मुनि पवित्र हिमालय की यात्रा के दौरान वहा से गुजरे और उसने अमरनाथ की गुफा में स्थित बर्फ के शिवलिंग को देखा।इसी तरह गुफा की खोज हुई और तब से इस प्रसिद्ध स्थल का दर्शन करने के लिए कई श्रद्धालु जाकर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
3) स्वामी विवेकानंद ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि, मैंने सोचा कि बर्फ का शिवलिंग स्वयं शिव हैं।मैंने ऐसी सुन्दर,इतनी प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है।
शिवलिंग कैसे बनता हैं उसके पीछे का रहस्य
अमरनाथ गुफा की प्रमुख विशेषताओं में से एक प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग हैं।प्राकृतिक रूप से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग कहा जाता हैं।
इस शिवलिंग का निर्माण गुफा की छत से पानी की बूंदों के टपकने से होता है।पानी के रुप में गिरने वाली बूंदे इतनी ठंडी होती है कि नीचे गिरते ही बर्फ का रुप धारण करती हैं।यह क्रम लगातार चलता रहता है और हिम बिंदु से टपकने वाली इसी जगह 10 फीट तक ऊंचा शिवलिंग बन जाता है।चन्द्रमा के घटने-बढने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढता रहता है।श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।अषाढ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं।
चौकानी वाली बात यह है की गुफा की छत से पूरी गुफा में गिरने वाली सारी बर्फ कच्ची बर्फ की होती हैं और हाथ में लेते हैं बर्फ भरभुरा हो जाती हैं।किंतु,बर्फ से निर्मित होने वाला शिवलिंग ठोस बर्फ से बना हुआ होता हैं।शिवलिंग से थोडी दूर गणेश,पार्वती और भैरव के तीनो के अलग अलग हिमखंड दिखाई देता हैं।यह कैसे शिवलिंग निर्मित होता हैं इसके पीछे का रहस्य अभी तक नहीं सुलझा हैं।
शुकदेव मुनि ने भी अमरकथा सुनी
जब भगवान शिव माता पार्वती को अमरकथा सुना रहे थे तब वहां एक शुक (तोता) मौजूद था।माता पार्वती को कथा सुनते सुनते नींद आ गई उसकी जगह वहा पर बैठे शुक ने हुंकारी भरना शुरू कर दिया।
जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई तब,वह शुक को मारने के लिए दौडे और उसके पीछे त्रिशूल छोडा।शुक अपनी जान बचाने के तीनो लोक में भागता रहा,भागते भागते वह वेदव्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्मरूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया।वह उनके गर्भ में रह गया।ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले।जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पडेगा,तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाये।गर्भ में ही इन्हें वेद,उपनिषद,दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था।वहीँ जन्म के बाद उन्होंने श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम कर तपस्या के लिए जंगल में गए और बाद में वह जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
दो कबूतरों ने भी अमरकथा सुनी
अमरनाथ यात्रा के साथ इन दो कबूतरों की कथा भी जुडी हुई हैं।हर एक श्रद्धालु ये इस कबूतर के बारे में सुना ही होगा।जब शिवजी माता पार्वती को कथा सुना रहे थे,उस समय वो कथा दो सफेद कबूतर सुन रहे थे।कथा समाप्त हुई और भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो उन्होंने पार्वती जी को सोया हुआ पाया।फिर,महादेव की नजर उन दोनों कबूतरों पर पडी।जिसे देखते ही महादेव को उन पर क्रोध आ गया।फिर दोनों कबूतर महादेव के पास आकार बोला कि हमने आपकी अमर कथा सुनी है,यदि आप हमें मार देंगे तो आपकी कथा झूठी हो जाएगी।जिसके बाद भगवान शिव ने उस कबूतरों को आशीर्वाद दिया कि वो सदैव उस स्थान पर शिव और पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करेंगे।
इस तरह कबूतर ने भगवान शिव की अमरकथा सुनी थी इसलिए वह अमर हो गए।एक और आश्चर्य की बात यह है कि,जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है,वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे ?आज भी गुफा में इन्हीं दो कबूतरों का दर्शन होते हैं।यहां इस कबूतर के दर्शन करना भगवान शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता हैं।
निष्कर्ष
यह थी अमरनाथ गुफा के बारे में रहस्यमय जानकारी और कहानियां जो आपको काफी पसंद आई होगी।हमारी और कोई भूल हुई हो तो आप हमे कॉमेंट के माध्यम से अवगत करा सकते हैं।हमारा यह लेख पढने के लिए धन्यवाद…